Sunday 19 January 2014

काश

ना जाने आज किस उधेड़बुन में खोया है यह मन, 
की एकाएक दिल कि परतें उधेड़ने लगा ,
आँखें थक चुकी हैं बह-बहकर तो,
कलम कि स्याही बहाने लगा,

सोचने लगा कि,
काश तुम मेरे दिल के हर एक ज़ज्बात को समझ पाती,
जो बातें आकर ज़ुबाँ पर रूक जाती हैं,
काश तुम मेरी हर एक वो बात समझ पाती,
जो आँसू गिरना चाहते हैं तुम्हारी गोद में,
लेकिन युहीं बारीश कि बूंदो से गिर जाते हैं धरती पे,
काश तुम मेरे उस हर एक आँसू कि प्यास को समझ पाती,
जो सफ़ेद फूल मैं रोज सज़ा देना चाहता हूँ तुम्हारे बालों में,
काश तुम उस फूल से जुड़े मेरे हर एक ख्यालात को समझ पाती,

मैंने कोशिश कि अपनी आँखों पे लगे उस परदे को सरकाकर,
वो देखने कि जो तुम लहरो से आगे देखती हो,
लेकिन इतनी चमक थी तुम्हारे उस सपने में,
कि मेरी आँखें चुँधिया गयीं,
पता नहीं क्यूँ,
जबसे सोचा है कि और नहीं सोचूँगा तुम्हारे बारे में,
मेरी तो आगे कि ज़िन्दगी ही धुँधिया गयी। 

काश तुम उस दिन तुम्हे खुद से दूर जाते हुए देख,
मेरे मन में उमड़ रहे सैलाब को समझ पाती,
तुम्हारे लिए दिल में भरी है जो चाह,
काश तुम नस-नस में बह रही तुम्हारे नाम कि उस शराब को समझ पाती,
पत्थरों पे बैठा  ये बेसुरा दिल गा रहा होता है गाना,
काश तुम अपने लिए  गाए हुए उस हर एक अल्फ़ाज़ को समझ पाती,
तुम्हारे मुस्कुरा जाने भर से छा जाती है जो मदहोशी इस दिलो-दिमाग पे,
काश तुम मेरे दिमाग के उस पागलपन को समझ पाती,
तुम पे लिखीं हैं मैंने जो आज तक इतनी पंक्तियाँ,
काश तुम उस हर एक पंक्ति का भावार्थ समझ पाती,
जब से सँभाला है होश तुम्हारे लिए जीया हूँ,
काश तुम तुम्हारे नाम कि उस हर एक साँस को समझ पाती,
काश.......

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